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लेखनी कहानी -07-Oct-2022 अवसाद

भौतिकतावाद अवसान गढ रहा है 
चारों तरफ आज अवसाद बढ रहा है 
बरबादी का सामान कंधों पर उठाकर 
इंसान अपनी मौत की सीढी चढ रहा है 

कोई बम फोड़ रहा है कोई सिर तोड़ रहा है 
कोई आंखें दिखा रहा है कोई बाहें मरोड़ रहा है 
अकेलेपन के दर्द में इस कदर डूबा है आदमी 
कि अवसाद में अपना रिश्ता मौत से जोड़ रहा है 

ना बुजुर्गों का मान ना महिलाओं का सम्मान 
हर आदमी नजर आता है जैसे खुद से परेशान 
खुद के बनाए हुए हालातों में घिर गया है आदमी 
नैराश्य के भंवर में दुनिया लगती है जैसे वीरान 

धर्म से मुंह मोड़ के कर्म से नाता तोड़ के 
ये कहां आ गये हैं हम सच की राह छोड़ के 
अंधी गली में फंस गया है आदमी 
अवसादों में घिर गया है आदमी ।। 

श्री हरि 
7.10.22 


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7 Comments

Pratikhya Priyadarshini

09-Oct-2022 01:03 AM

Bahut khoob 🙏🌺

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Suryansh

08-Oct-2022 10:22 PM

गढ़,,,, बढ़,,, चढ़,,,, सीढ़ी,,, होना चाहिए sir

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Suryansh

08-Oct-2022 10:21 PM

लाजवाब,, एकदम जीवंत चित्रण आज की हकीकत का

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